


मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव की रणनीति पूरी तरह से सफल रही। बिना किसी शोर-शराबे के भारतीय जनता पार्टी मध्य प्रदेश इकाई के अध्यक्ष के पद पर हेमंत खंडेलवाल का निर्विरोध निर्वाचन हो गया। इस नियुक्ति ने भारतीय जनता पार्टी में गुटबाजी करने वाले नेताओं को बड़ा झटका दिया है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया कि मध्य प्रदेश में पार्टी के मूल कार्यकर्ताओं को ही महत्व दिया जाएगा।
ना क्षेत्रवाद, ना जातिवाद सिर्फ निष्ठा और योग्यता ही मूल आधार
मध्य प्रदेश की राजनीति की यही खूबसूरती है। मध्य प्रदेश 7 राज्यों के साथ बॉर्डर शेयर करता है। सबके नेता और नागरिक मध्य प्रदेश आते हैं, लेकिन किसी भी राज्य की पॉलिटिकल पॉलिसी, मध्य प्रदेश की राजनीति को प्रभावित नहीं कर पाती। 1998 से कई पार्टियों मध्य प्रदेश में जातिवाद और क्षेत्रवाद को लेकर अपनी पॉलिटिक्स जमाने की कोशिश करती रही परंतु आज तक एक भी पार्टी सफल नहीं हो पाई। इस बार भी लोग अनुमान लगा रहे थे कि, ग्वालियर में तनाव के कारण अनुसूचित जाति का व्यक्ति अध्यक्ष बनाया जाएगा, आदिवासी बेल्ट को बैलेंस करने के लिए किसी आदिवासी को अध्यक्ष बनाया जाएगा, आजकल पार्टी महिलाओं पर ध्यान दे रही है, इसलिए किसी महिला को अध्यक्ष बनाया जाएगा। लेकिन मोहन यादव के बाद हेमंत खंडेलवाल के नाम पर मोहर लगाकर पार्टी ने स्पष्ट कर दिया कि मध्य प्रदेश में नेता का चयन, पार्टी के प्रति निष्ठा और योग्यता के आधार पर ही होगा।
मोहन यादव ने हेमंत खंडेलवाल को ही आगे क्यों बढ़ाया?
मध्य प्रदेश में पार्टी के प्रति निष्ठा रखने वाले नेताओं की कमी नहीं है। योग्यता के मामले में भी कांटे की टक्कर की स्थिति है। इसके बावजूद मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने हेमंत खंडेलवाल के नाम को आगे बढ़ाया और न केवल आगे बढ़ाया बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि हेमंत खंडेलवाल का चुनाव सर्वसम्मति से हो। यहां तक की मीडिया में भी कोई दूसरा दावेदार, किसी भी प्रकार का बयान नहीं दे। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने हेमंत खंडेलवाल के नाम को आगे क्यों बढ़ाया, इसके कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार है:-
BJP के वरिष्ठ नेता और RSS से जुड़ाव
दोनों ही भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ और समर्पित नेता हैं। दोनों का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से गहरा जुड़ाव रहा है। मोहन यादव 1993-96 तक RSS के उज्जैन नगर में विभिन्न पदों पर रहे, जबकि हेमंत खंडेलवाल की निर्विवाद छवि और RSS से निकटता उनकी नियुक्ति का एक कारण रही।